प्राचीन काल के वेदों में कहीं-कहीं ब्रह्मास्त्र का विवरण मिलता है. रामायण और महाभारत में भी ब्रह्मास्त्र का उपस्थिति का विवरण मिलता है।
रामायण में लक्ष्मण जी ने मेघनाथ को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र चलाने की राम जी से बात की थी जिसमें राम भगवान ने कहा था कि अगर ब्रह्मास्त्र का उपयोग किया गया तो लंका के निर्दोष लोग भी मारे जाएंगे.
ब्रह्मास्त्र कितने प्रकार के होते हैं.
यह जानने से पहले की ब्रह्मास्त्र की संपूर्ण संपूर्ण ताकत कितनी ब्रह्मास्त्र की संपूर्ण ताकत कितनी है उससे पहले हम यह जान लेते हैं कि ब्रह्मास्त्र कितने प्रकार के होते हैं.
मुख्य तौर से अगर देखा जाए और जितने प्रमाण आज तक उपलब्ध हैं उसके हिसाब से ब्रह्मास्त्र को लगभग 4 वर्गों में बांटा जा सकता है
इस वर्ग में इच्छा मात्र से ब्रह्मास्त्र को प्रगट करने की क्षमता चलाने वाले के पास होती है ।
2. रसायनिक वर्ग
यह वर्ग ब्रह्मास्त्र का मारक क्षमता का परिचय देता है.
इसी वर्ग में तय किया जाता है कि आखिर यह अस्त्र कितना कितना अस्त्र कितना कितना विनाश करने में सक्षम होगा।
इस वर्ग में उन रसायनों का चयन किया जाता है जो ब्रह्मास्त्र के मारक क्षमता को कम या ज्यादा कर सकते हैं।
3. दिव्य वर्ग
यह वर्ग ब्रह्मास्त्र के दिव्यता को दर्शाता है इसमें पता चलता है कि यह सृष्टि की एक ऐसी ताकत का प्रतिनिधित्व करता है जो बहुत दिव्य है.
अगर हम साधारण भाषा में कहे तो यह कोई आम अस्त्र नहीं है। ब्रह्मास्त्र की विनाश करने की क्षमता केवल जीव को मारने तक ही नहीं है इसके अलावा यह प्रकृति के ताकत अनु और परमाणु में व्याप्त है उस स्तर तक यह विनाश विनाश कर देता है.
अगर हम साफ तौर से से तौर से से कहे तो यह केवल एक शरीर को नहीं मारता बल्कि वह शरीर जिन अणु परमाणु से मिलकर बना है उस तक को नष्ट कर देता है।
इसलिए ब्रह्मास्त्र को दिव्य वर्ग में रखा जाता है जो कि साधारण साधारण अस्त्रों के वर्ग में नहीं आता है।
4. मंत्र वर्ग
ब्रह्मास्त्र का प्रयोग मंत्रों से बना है है. मंत्र एक प्रकार की सहेली है जो इस ब्रह्मास्त्र को चलाने के लिए चाहिए।
ब्रह्मास्त्र के चलाने वाले मंत्र और इसे व्यक्त करने की शैली सिर्फ व्यक्त करने की शैली सिर्फ उसे ही पता होता है जिसके पास यह ब्रह्मास्त्र होता है.
जिस तरह से आज परमाणु बम को चलाने के लिए एक पूरी प्रक्रिया है उसी तरह से आप ब्रह्मास्त्र को चलाने के लिए मंत्र को समझ सकते हैं.
अगर यह किसी के हाथ लग भी जाए तो भी इसका उपयोग ना कर सके मंत्र वर्ग इस बात को सुनिश्चित करता है।
युद्ध में उपयोग किए जाने वाले साधन का भाग
युद्ध में उपयोग किए जाने वाले लडाई के साधनों को मुख्यतः दो भागों में बांटा जा सकता है।
1. शस्त्र
शास्त्र ऐसे हथियार को कहते हैं जो मुख्यतः धातु से निर्मित होते हैं.
इसे चलाने एवं रखने के लिए कोई भी विशेष व्यवस्था नहीं की जाती है.
यह छोटी एवं आम लड़ाई में उपयोग किए जाने वाले हथियार होते हैं
अगर हम इसका उदाहरण दे तो तलवार या चाकू या साधारण बांध के समान आप इसे समझ सकते हैं.
इसमें कोई दिव्यता नहीं होती है। और यह सिर्फ उन्हीं को नुकसान पहुंचा सकते हैं जिनकी और यह चलाए गए
2. अस्त्र
जबकि आज तक ऐसे हथियार होते हैं जो दिव्य विद्या से तैयार किए जाते हैं इनको बनाने एवं चलाने का तरीका शस्त्रों से बिल्कुल भिन्न होता है।
जैसा कि मैंने पहले आपको बताया था कि यह मंत्र संचालित अस्त्र होते हैं.
इस प्रकृति में जो शक्तियां हैं जिससे यह प्रकृति चलाएं मान है है उसका अध्ययन करके उस शक्ति को को को बांध लेना फिर उन शक्तियों का अस्त्र के रूप में उपयोग कर लेना इस विद्या का उद्देश्य होता है.
प्रत्येक दिव्य अस्त्र पर प्रत्येक देव और देवी का अधिकार होता है.
असल में प्रकृति में व्याप्त विभिन्न प्रकार की शक्तियों को पहचान कर उन्हें हमने किसी देवी या देवी का नाम दे दिया है जिससे उस अस्त्र की प्रकृति और क्षमता को पहचाना जा सके.
हम सब जानते हैं कि ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की है। तू जिन तत्वों से इस सृष्टि की रचना हुई है उस तत्वों को पहचानकर एक ऐसे अस्त्र का रचना कर देना जो उस तत्वों का विनाश कर सके उसे ही ब्रह्मास्त्र कहा जाता है.
ब्रह्मास्त्र एक अचूक अस्त्र की श्रेणी में आता है जो शत्रु का समूल विनाश करने में सक्षम है एक ब्रह्मास्त्र का कार्ड सिर्फ सिर्फ दूसरा ब्रह्मास्त्र ही हो सकता है.
महर्षि वेदव्यास जी ने बताया है कि जहां भी ब्रह्मास्त्र छोड़ा जाता है वहां आने को बरसों बरसों तक पेड़-पौधों और जीव-जंतुओं की उत्पत्ति संभव नहीं है.
हमने महाभारत काल के बारे में सुना है कि बहुत से स्त्रियों के गर्व ब्रह्मास्त्र के कारण मारे गए थे. जो भी जीवन उस समय उत्पन्न होने की प्रक्रिया में था उन सभी का विनाश हो गया था.
ऐसा भी विवरण हमें मिलता है कि प्राचीन काल में ऐसे अस्त्रों का उपयोग किया गया था।
तो क्या आज हमारे पास कहीं कोई ऐसा प्रमाण उपलब्ध है। जिससे यह बात साबित होती हो कि प्राचीन काल मे ऐसे दिव्य अस्त्रों का उपयोग किया गया हो.
आर्कलॉजिस्ट ने बहुत से ऐसे स्थानों की पहचान की है जहां पर ऐसे सबूत मिलते हैं कि यहां किसी ना किसी ऐसे अस्त्र का प्रयोग किया गया था जिससे इतनी उर्जा निकली थी। जिससे एक पूरी सभ्यता का विनाश हो गया था।
आप मोहन जोदड़ो और हड़प्पा सभ्यता के बारे में तो जानते ही होंगे जो लगभग 5000 से 7000 ईसा पूर्व की बात है.
वहां ऐसे नर कंकाल पाए गए हैं जिनकी अचानक ही मृत्यु हो गई थी और जो किसी रेडिएशन के कारण हुई थी
इसके अलावा राजस्थान के जोधपुर के आसपास ऐसा क्षेत्र उपस्थित है जिसमें रेडियो एक्टिविटी के प्रमाण मिलते हैं. ऐसे प्रमाण भी मिलते हैं कि किसी रेडियो एक्टिविटी के कारण एक्टिविटी के कारण लगभग 5 से 6 लाख इंसानों की मृत्यु एक झटके में हो गई थी.
निश्चय ही किसी दिव्य विनाशकारी अस्त्र के कारण ऐसा हुआ होगा. मुंबई के आसपास भी शोधकर्ताओं ने ऐसे जगहों जगहों का पता लगाया है जोया प्रमाण देता है कि प्राचीन काल प्राचीन काल में निश्चय परमाणु अस्त्र के समान ब्रह्मास्त्र का प्रयोग हुआ था.
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